- जानिए बुढ़ापे में जीवन की शाम का आनंद लेने वालों की संख्या भारत में क्यों हुई कम?
- बचत और निवेश हर व्यक्ति के जीवन का आधार
मुंबई। बचपन, जवानी और बुढ़ापा ये तीनों अवस्थायें हर इंसान के जीवन की एक सामान्य प्रकियायें हैं। बचपन की शिक्षा और जवानी की मेहनत, बुढ़ापे में चैन से जीने की राह बनाती हैं। वैसे तो हर व्यक्ति अपने जीवन भर की मेहनत से बहुत धन कमाता है लेकिन फिर भी ऐसे बहुत कम लोग हैं जो अपने बुढ़ापे में जीवन की शाम का आनंद लेते हैं। कई ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के साथ-साथ कमाना भी शुरू कर दिया था। हमारे भारत देश में ऐसे दो-पांच हज़ार नहीं बल्कि लाखों-करोड़ों लोग ऐसे हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा पूरी होने से पहले ही कमाना शुरू कर दिया था।
शिक्षा पूरी होने से पहले ही कमाने वाले ऐसे लाखों-करोड़ों लोगों ने अपनी अधूरी शिक्षा के कारण पैसा नहीं कमाया ऐसी बात भी नहीं हैं। ऐसे लोगों ने इतना पैसा कमाया होगा जिसका हिसाब लगाया जाए तो वे पढ़े-लिखे शिक्षित लोगों से भी आगे निकल जाएंगे।
आज हम सिर्फ़ ऐसे ही लोगों की बात करते हैं जिन्होंने अपनी शिक्षा पूरी होने से पूर्व ही अपना काम-धंधा शुरू कर दिया था अथवा तो किसी ने कहीं नौकरी करना शुरू कर दिया था। ऐसे लोगों की सफलता और असफलता का हिसाब-किताब जोड़ा जाए तो आख़िर में वे अपने बुढ़ापे के सफ़र तक कितना धन-संपत्ति जोड़ पाए उसी से उनके जीवन के फूलों की ख़ुशबू निर्धारित होती है। जीवन के बुढ़ापे में खुशबू तब जाकर अधिक आती है जब उनके जीवन की कमाई को सही जगह निवेश किया होता है।
ऐसे ही अपनी पढ़ाई को पूरी किए बिना कमाई की यात्रा पर निकलने वाले लोगों में तीन तरह के लोग देखे गए हैं। जिसमें सर्वप्रथम वे लोग थे जिन्होंने यह निर्णय लिया हुआ था की वे अपनी कमाई का एक हिस्सा पहले बचा लेंगे और उसके बाद जो पैसा रहेगा उसे ख़र्च करेंगे। दूसरी श्रेणी में वे लोग थे जिन्होंने यह निर्णय किया हुआ था कि पहले अपने ख़र्चे पूरे कर लेते हैं और फिर उसमें से कुछ पैसा बच जाएगा तो ही उसकी बचत-निवेश करेंगे। आख़िर में तीसरी श्रेणी में आने वाले वे लोग थे जो इन दोनों ही श्रेणी से बिल्कुल भिन्न वे न तो पहले बचाने में विश्वास करते थे और न ही बाद में बचाने में विश्वास करते थे।
आइए इन तीनों तरह के व्यक्तियों को थोड़ा और भी आसानी से समझते हैं, पहला व्यक्ति अपनी सेलरी मिलते ही सबसे पहले उसमें से एक हिस्से को अलग कर उसको बचत-निवेश में डाल देता है और फिर उसके बाद शेष राशि को खर्च करने के लिए रख देता हैं जिससे वह अपने पूरे महीने का खर्च चला सके।
दूसरा व्यक्ति वह है जो अपनी सेलरी में से पूरे महीने खर्च करने के बाद जो भी थोड़ा बहुत पैसा बच जाये तो ही वह उसकी बचत-निवेश करता है।
तीसरा और आखिरी श्रेणी का वह व्यक्ति जो इन दोनों ही श्रेणी से अलग है जो ना तो अपनी सेलरी मिलने के शुरू में बचत-निवेश करता और ना ही महीने के आखिर में पैसा बचने पर करता है। वह तो बचत-निवेश में विश्वास ही नहीं करता है।
उपरोक्त तीन प्रकार के व्यक्तियों की श्रेणी सिर्फ नौकरी करने वालों पर ही लागू नहीं होती है बल्कि व्यापार-व्यवसाय करने वाले लोगों में भी ऐसे ही तीन प्रकार के लोगों को देखा जा रहा है। जिन्होंने अपने जीवन के आखिरी पड़ाव पर अपने सफलता के शिखर की चर्चाएं या असफलता का रोना रोते हुए देखा जा सकता है।
अब यह आपके अपने निर्णय पर निर्भर करता है कि आप अपने आपको इन तीन तरह के व्यक्तियों में से किस श्रेणी में रखना पसंद करते हैं..?
उदाहरण के तौर पर पढ़ें ये केस स्टडी...
रमेश, सुरेश और राजेश ये तीनों भाई हैं। इन तीनों ने 18 साल की उम्र में कमाना शुरू कर दिया था। तीनों की मंथली इनकम 10,000 रुपये थी। राजेश अपनी कमाई का 20 प्रतिशत यानी 2000 रुपये इन्वेस्टमेंट में लगाते थे। वहीं सुरेश कभी-कभी केवल 2 प्रतिशत अपनी कमाई का यानी 200 रुपये इन्वेस्टमेंट में लगा रहे थे। तीसरा भाई राजेश अपनी कमाई को न तो इन्वेस्टमेंट में लगाते थे और न ही सेविंग में। राजेश अपने भविष्य को लेकर जागरूक नहीं थे।
करीब पचास साल की उम्र में तीनों की मंथली इनकम एक-एक लाख रुपये हो गई। रमेश ने पचास साल की उम्र में अपनी संपत्ति (क्योंकि वो अपनी कमाई का 20 प्रतिशत इन्वेस्टमेंट करते थे) 4.50 करोड़ बना ली। वहीं सुरेश ने अपनी कुल संपत्ति (क्योंकि वो अपनी कमाई का 2 प्रतिशत कभी-कभी इन्वेस्टमेंट कर लिया करते थे) 1.50 करोड़ बना ली। राजेश की कुल संपत्ति दोनों से बहुत कम या अभी भी शून्य ही है क्योंकि उन्होंने अपनी कमाई को केवल खर्च किया पूंजी न तो बचाया और न ही इन्वेस्टमेंट में लगाया।
पचास साल के बाद तीनों ने इस तरह से की अपने बुढ़ापे की तैयारी
रमेश ने 50 से 60 साल की उम्र तक हर महीने 65000 हजार रुपये इन्वेस्टमेंट में लगाए। सुरेश और राजेश इन दोनों ने भी अब हर महीने 45000 इन्वेस्टमेंट में लगाने शुरू कर दिए। जब ये तीनों भाई 60 साल की उम्र में पहुंचे तो तीनों की कुल संपत्तियों में बहुत बड़ा अंतर देखा गया।
निष्कर्षः ध्यान से समझने वाली बात
रमेश का इन्वेस्टमेंट को लेकर पहले से ही अपना लक्ष्य निर्धारित था, रमेश को देखकर ही दोनों भाईयों ने सुरेश और राजेश ने अपना इन्वेस्टमेंट शुरू किया। मगर इन दोनों का कोई लक्ष्य नहीं था। अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इन्वेस्टमेंट में लगाने के कारण रमेश की वृद्धावस्था में कुल संपत्ति 10 करोड़ रुपए जोड़ी गई, वहीं कम इन्वेस्टमेंट की वजह से सुरेश की कुल संपत्ति 60 साल की उम्र में 4.5 करोड़ और राजेश की कुल संपत्ति 1.5 करोड़ रुपए थी। इसक अर्थ यह हुआ की इन्वेस्टमेंट की वजह से रमेश अपने बुढ़ापे में अपने दोनों भाईयों से ज्यादा अमीर हो चुके थे।
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